ش | ی | د | س | چ | پ | ج |
1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | |
7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 |
14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 |
21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 |
28 | 29 | 30 | 31 |
چه روز ها که یک به یک غروب شد نیامدی چه بغض ها که در گلو رسوب شد نیامدی
خلیل آتشین سخن تبر به دوش بت شکن خدای ما دوباره سنگ و چوب شد نیامدی
برای ما که خسته ایم و دل شکسته ایم نه ولی برای عـده ای چه خوب شــد نیامدی
تمام طول هــفته را در انتظار جمعه ام دوباره صبح و ظهر نه غروب شد نیامدی